बिंदास डेस्क : हम देखते और सुनते आ रहे हैं कि जब भी कोई मरता है तो उसके शव को श्मशान ले जाते वक्त उसके परिजन और जानकार ‘राम नाम सत्य है’ बोलते हुए उसे शमशान घाट तक लेकर जाते हैं। लेकिन ‘राम नाम सत्य है’ इसे बोलने के पीछे का असल उद्देश्य कुछ ही लोग जानते हैं। बेहद कम लोगों को पता है कि आखिर मृत्क की शव यात्रा के समय ऐसा क्यों कहा जाता है।
इसके बारे में महाभारत के मुख्य पात्र और पांडवों के सबसे बड़े भाई धर्मराज युधिष्ठिर ने एक श्लोक के बारे में बताया है जिससे इस वाक्य को कहने का सही मतलब पता लगता है-
श्लोक–
अहन्यहनि भूतानि गच्छंति यमममन्दिरम्।
शेषा विभूतिमिच्छंति किमाश्चर्य मत: परम्।।
अर्थात-
मृतक को जब शमशान घाट ले जाते हैं तब कहते हैं ‘राम नाम सत्य है’ परंतु जैसी ही घर लौटते हैं तो राम नाम को भूलकर मोह माया में लिप्त हो जाते हैं। मृतक के घर वाले ही सबसे पहले मृतक के माल को संभालने की चिंता में लग जाते हैं और माल पर लड़ते-भिड़ते भी हैं।
धर्मराज युधिष्ठिर आगे कहते हैं, “नित्य ही प्राणी मरते हैं, लेकिन शेष परिजन सम्पत्ति को ही चाहते हैं इससे बढ़कर क्या आश्चर्य होगा?”
‘राम नाम सत्य है, सत्य बोलो गत है’ बोलने के पीछे मृतक को सुनाना नहीं होता है बल्कि साथ में चल रहे परिजन, मित्र और वहां से गुजरते लोग इस तथ्य से परिचित हो जाएं कि राम का नाम ही सत्य है। जब राम बोलोगे तब ही गति होगी।